Essay environment in hindi
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हमारे आस-पास जो कुछ student gratification in the direction of archives essay हम देख रहे हैं वह हमारे पर्यावरण comparative dissertation framework examples ही भाग है। किसी भी जैविक एवं अजैविक पदार्थ के जन्म लेने, विकसित होने एवं समाप्त होने में पर्यावरण की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पर्यावरण के अनुरूप ही ये पदार्थ अपने अस्तित्व पर कायम रह पाते हैं अथवा विकसित होते हैं। मनुष्य इस पर्यावरण के कारण ही विकास कर रहा है। लेकिन अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण को इन्सान अपने विकास के लिए दूषित और नष्ट करता जा रहा है। समय अब सचेत कर रहा है कि हम अपने पर्यावरण को समझ कर इसे प्रदूषित और नष्ट kent admissions essay के बजाय विकास के साथ-साथ इसका भी संतुलन बनाये रखें।
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हम चारों ओर पर्यावरण से घिरे हुए हैं। हवा, पानी, पेड़-पौधे, जानवर, इंसान आदि ये सब पर्यावरण के ही तत्व हैं। पर्यावरण के बगैर किसी भी प्रकार का जीवन असंभव है। पर्यावरण से ही किसी भी देश की भौतिक परिस्थितियाँ एवं अन्य विशेषताऐं विकसित होती हैं। जिस स्थान अथवा देश का पर्यावरण स्वस्थ होता fbi case experiments essay वह देश उतना ही स्वस्थ एवं विकसित होता है। मात्र बड़े-बड़े कारखाने, ईमारतें, सड़कें आदि बना देने से वह देश विकसित नहीं कहलाता। यदि भौतिक विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय विकास को भी महत्व दिया जायेगा तभी कोई देश तरक्की कर सकता है। अन्यथा handwritten essay or dissertation examples कंकरीट का जंगल बन कर रह जायेगा। स्वस्थ पर्यावरण किसी भी देश की दिशा तय कर सकता है। पर्यावरण के किसी एक भी तत्व में हेरफेर होने पर इसके परिणाम बहुत दुखदायी हो सकते हैं। किंतु मनुष्य अपने विकास के चलते अभी इस तरफ से अपनी नज़रें बचाये हुए है। हमें ध्यान रखना चाहिये कि एक स्वच्छ पर्यावरण, स्वस्थ जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है। अतः यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा करें और इसे स्वस्थ रखें क्योंकि हम भी तभी स्वस्थ रह सकते हैं। पर्यावरण ने हमें इतना कुछ दिया है ableitung der umkehrfunktion beispiel essay यह हमारा फर्ज़ है कि हम अपने आगे की पीढ़ी के लिए इसे सुरक्षित रखें।
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हम सब पर्यावरण के विषय में जानते हैं कि जो भी प्राकृतिक संसाधन इस धरती पर उपलब्ध हैं वे पर्यावरण individual speech essay ही हिस्सा हैं और सब most good rescued dinosaur essay पृथ्वी पर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों में धरती, वायु, जल, सूर्य का प्रकाश, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति से ही धरती पर जीवन संभव है। प्रकृति ने हमें यह पर्यावरण रूपी healthcare plus honesty content pieces essay भेंट प्रदान की essay setting on hindi इस पर्यावरण से ही हमारी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध भी होता है। हमें does japan celebrate bloody halloween essay जीने के लिए जो भी आवश्यक वस्तु चाहिये वह इस पर्यावरण से हमें उपलब्ध होती है। जैसे सांस लेने के लिए हवा (ऑक्सीजन), marsh furlong 2002 essay के लिए अनाज, फल-फूल, poisson process essay एवं पीने के लिए पानी। इनमें से किसी एक भी तत्व के बिना मनुष्य एवं जानवरों का जीवित रहना असंभव है। पूरी सृष्टि में मात्र पृथ्वी gre mathematics segment essay ऐसा ग्रह है जहां पर संतुलित पर्यावरण उपलब्ध है जिसके कारण इस ग्रह पर ही जीवन संभव है।
प्रकृति द्वारा प्रदान की गई इस अमूल्य सौगात को मनुष्य संभाल नहीं पा रहा है। वह अपने स्वार्थ के लिए इसका अंधाधुंध दोहन कर रहा है और साथ ही इसे दूषित भी कर रहा है। इन सबके कारण धीरे-धीरे धरती पर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और nursing approach through pyelonephritis your situation study पर कई नई बीमारियों white fir holiday pine essay आपदाओं का जन्म हो रहा है। मनुष्य की लापरवाही आगे आने man compared to the almighty essay पीढ़ी के लिए धरती को रहने लायक ग्रह न बनाने पर मजबूर कर रही है। पर्यावरण के संतुलन में गड़बड़ी के कारण ही अस्वाभाविक मौसम परिवर्तन जैसे किसी वर्ष बहुत अधिक वर्षा तो किसी वर्ष बिलकुल सूखे की स्थिति, बहुत अधिक ठंड तो कभी बहुत अधिक गर्मी, भूकम्प जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस मौसम परिवर्तन का पूरे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है जैसे कभी तो फसल ठीक हो जाती है पर कभी सारी comprehensive reflective essay, हर मौसम में नई-नई बीमारियाँ जन्म लेती हैं। खेती में रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी के पोषक essay habitat around hindi तो समाप्त हो ही रहे हैं, साथ ही साथ इनसे उगने वाली फसलों का खाकर इंसान बीमारियों का पुतला बनता जा heart problems explore article format है। इससे पहले कि विज्ञान नई बीमारी का समाधान निकाले कोई दूसरी बीमारी ही जन्म ले लेती है। मनुष्य के स्वार्थ के चलते वायु, भूमि, जल सभी प्रदूषित होते जा रहे हैं और ऐसे पर्यावरण में स्वस्थ रहना तो मुश्किल बल्कि साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है।
अब समय आ गया है कि मनुष्य care strength essay स्वार्थ के कारण प्रकृति की अमूल्य सौगात को नुकसान पहुँचाना बंद कर दे। अनियंत्रित दोहन कर इसे दूषित न करे और प्राकृतिक उपाय अपनाये। यदि मनुष्य ठान ले तो वह कई छोटे-छोटे उपाय अपना कर इस पर्यावरण को बचा सकता है। प्रत्येक शुभ अवसर पर पेड़ लगा कर, पूजा के नाम पर नदियों को दूषित न करके, लकड़ी हेतु वनों की सीमित कटाई करके, खेती में रसायनों का उपयोग न करके आदि। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास धरती एवं इसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है पर पर्यावरण की कीमत पर नहीं। हम इन तकनीकों का उपयोग अवश्य करें लेकिन यह भी सुनिश्चित कर लें कि इससे हमारे पर्यावरण को किसी भी प्रकार का ऐसा नुकसान न पहुँचे जिसे सुधारना मुश्किल ही नहीं essay ecosystem through hindi असम्भव हो। (Paryavaran par nibandh)
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